तुम बनारस घाट हो, मै आचमन को आऊँगी।
अंक में लेना मुझे मै भस्म बन मुस्काऊँगी।
तुम बनारस घाट हो,,,,,,
तेरे चरणों में जहाँ पर ,
प्रीति गंगा की सजी।
दिव्य दर्शन नित वहाँ जब ,
ताल कीर्तन की बजी।
राख बनकर घाट पर सम्मान जी भर पाऊँगी।
तुम बनारस घाट हो, मै आचमन को आऊँगी ।
तेरी पूजन तेरी वंदन,
तेरी ही चाहत मुझे।
शर्त पूरी मै करूँ सब ,
पाने की खातिर तुझे।
मौत जो है शर्त तो मै मौत से सज जाऊँगी।
तुम बनारस घाट हो, मैं आचमन को आऊँगी ।
जग की है परवाह किसको,
प्रेम जब कर ही लिया।
तन की भी चाहत नही जब,
मन समर्पित कर दिया।
पुनर्मिलन की आस ले पुनर्जन्म ले कर आऊँगी।
तुम बनारस घाट हो, मै आचमन को आऊँगी ।
छन्द में मैं सज सँवर कर,
तेरी एक कविता बनूँ।
हरने को तेरा तिमिर मै,
भोर की सविता बनूँ ।
तुमको मैं स्पर्श करके, स्वर्ग का सुख पाऊँगी।
तुम बनारस घाट हो, मै आचमन को आऊँगी।।
अंक में लेना मुझे, भस्म बन मुस्काऊँगी।
– रूबी गुप्ता (शिक्षिका) दुदही, कुशीनगर, उत्तर प्रदेश, भारत