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ग़ज़ल – ऋतु गुलाटी

याद में आज तो होठो को सिला रक्खा है।

हमने इस दिल में वही नाम बसा रक्खा है।

 

पाक दिल में हर पल सपने सजाता रहा हूँ।

तुमको दिन रात ख्याबो में सजा रक्खा है।

 

दर्द दिल में तपकर कुंदन बनता रहा हूँ।

मैने किस्मत को लकीरो से बना रक्खा है।

 

आज  तेरे कदमो में सिर को झुकाया।

बंदगी में खुद को आज भुला रक्खा है।

 

तड़फते हैं तन्हाई में सभी ही यारो।

प्यार में आज खुदा ऋतु को बुला रक्खा है।

– ऋतु गुलाटी ऋतंभरा, मोहाली , चंडीगढ़

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