त्यौहार जब भी मनाते हैं हम।
तब क्यों भूल यह जाते हैं हम।।
मदहोश होकर यह करते हैं हम।
धर्म और शर्म भूल जाते हैं हम।।
त्यौहार जब भी ——————।।
जाति का अभिमान हम नहीं भूलते।
व्यवहार मानवता का हम नहीं करते।।
बलवें करवा देते हैं धर्मों में हम ।
कर देते हैं बदनाम धर्म को हम।।
त्यौहार जब भी———————-।।
उड़ते हैं हवा में हम भूलकर जमीं।
हम देखते हैं सिर्फ औरों में कमी।।
बदनामी औरों की करते हैं हम।
बस्तियां गरीबों की जलाते हैं हम।।
त्यौहार जब भी——————–।।
खुशी- जश्न में हम यह भूल जाते हैं।
चिराग औरों के हम तब बुझाते हैं।।
तस्वीर प्रकृति की बिगाड़ते हैं हम।
ऐसे बुरे काम – पाप करते हैं हम।।
त्यौहार जब भी——————-।।
– गुरुदीन वर्मा.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)
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