धनतेरस के दिन,
मैंने लक्ष्मी माँ से,
गुलाम की तरह पूछा ।
“माँ सून.. ”
बोली,
सूना. .
बोला,
“कहाँ चल रहा,
आज कल आना जाना ”
बोली,
“तुझे क्या !
तू बैठ घर में,
महंगाई का ,
बजाते तूनतूना ।
मेरा सब तरफ,
चल रहा आना जाना ।
मॉल,बाजार, सुनार ,
गर्दी हैं धूवांधार ।
काउंटर चल रहें हाऊस फुल ।
पैर रखने जगह नहीं,
सब खरीदी में मशगूल ।
अमीर भी चढ़ रहें,
एक एक पायदान ।
ठोक में चल रहा,
कंपनियों का आदान प्रदान ।
सब तरफ हैं खूशियों का दौर ।
फालतू बात कर ,
अब मुझे ना कर बोर । ”
मैं बोला माँ,
” मैं ना करुंगा बोर,
मैं भी चाहता हूं,
चलता रहें तेरा यह दौर ।
बस्, एक नज़र रखना,
“दीपावली की शुभकामनाएं ”
देने वालो की ओर… . ”
– प्रदीप सहारे- नागपुर ( महाराष्ट्र )
झूनझूना – ७०१६ ७००७६९