बहुत हुआ दुर्गम पथ छोड़ो,
अब जगो युवा पग-बेड़ी तोड़ो,
कर्मवीर बन नए मंज़िल पाना,
पीछे मुड़कर क्या घबड़ाना।
अतीत भूल अब जाग-जाग,
पुस्तकों से करना है अनुराग,
है सफल अब होना तुमको,
मेहनत से न कभी तुम भाग।
हे लाल अब संबल बन तुम,
परिश्रम से है सोना उपजाना,
अभिलाषी-मितभाषी,धैर्यवान,
तुमको बसुधा को है सजाना।
कर्तव्य पथ का भान करो अब,
मुश्किलें खड़ी हो,डटकर रहना,
तुम शूरवीर,दिग्विजय,चेतक हो,
आगे बढ़ना बस बढ़ते ही रहना।
– समीर सिंह राठौड़, बंशीपुर, बांका, बिहार