जून का महिना,
थोड़ी बूंदा बांदी ।
थोड़ी सी उमस,
थोड़े काले बादल ।
बीच बीच में,
चलती गर्म हवा ।
ऑफिस में भी चलती,
गरम नरम हवा .
क्या हुआ? कुछ ख़बर !!
हर कोई रहता उत्सुक ,
सुनने को खबर ।
कोई मसखरा ,
उड़ा देता खबर ।
कल पक्का , बॉंस के पास ,
मैंने देखा लेटर !
साथ ही रिवाईज के साथ ,
परसेंटेज की कर देता बात ।
बात ही बात में,
वह हो जाता गुल ।
उसकी बाते सुन,
काम का बोझ जाते हम भूल ।
मुस्कुराता हुआ चेहरा लेकर,
आते हैं घर ।
मन ही मन हिसाब ,
लगाते रात भर ।
सुबह झूठी ठहरती,
कल की ख़बर ।
कुर्सी पर बैठते ,
मन को मारकर ।
मँनेजमेंट को कोसते दिनभर ।
नौकरी जाने का भी ,
लगता हैं ड़र ।
ड़र मन में आते हैं ,
दिखता ईएमआई का गणित ।
लगते काम पर,
फिर बराबर ।
अगले , अगल माह का ,
इंतजार . …
यही हैं Incriment का सार ।
प्रदीप सहारे। नागपुर , महाराष्ट्र