मनोरंजन

कविता – प्रदीप सहारे

जून का महिना,

थोड़ी बूंदा बांदी ।

थोड़ी सी उमस,

थोड़े काले बादल ।

बीच बीच में,

चलती गर्म हवा ।

ऑफिस में भी चलती,

गरम नरम हवा .

क्या हुआ? कुछ ख़बर !!

हर कोई रहता उत्सुक ,

सुनने को खबर ।

कोई मसखरा ,

उड़ा देता खबर ।

कल पक्का , बॉंस के पास ,

मैंने देखा लेटर !

साथ ही रिवाईज के साथ ,

परसेंटेज की कर देता बात ।

बात ही बात में,

वह हो जाता गुल ।

उसकी बाते सुन,

काम का बोझ जाते हम भूल ।

मुस्कुराता हुआ चेहरा लेकर,

आते हैं घर ।

मन ही मन हिसाब ,

लगाते रात भर ।

सुबह झूठी ठहरती,

कल की ख़बर ।

कुर्सी पर बैठते ,

मन को मारकर ।

मँनेजमेंट को कोसते दिनभर ।

नौकरी जाने का भी ,

लगता हैं ड़र ।

ड़र मन में आते हैं ,

दिखता ईएमआई का गणित ।

लगते काम पर,

फिर बराबर ।

अगले , अगल माह का ,

इंतजार . …

यही हैं Incriment  का सार ।

प्रदीप सहारे। नागपुर , महाराष्ट्र

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