शारदीय रात्रि,
ले रहा मधु चुबंन,
विधु मृदुल चाँदनी गात।
चंचल-चपला यामिनी,
पुलकित मधुर सुहावनी,
नृत्यांगना, नक्षत्र तारों की बारात ।
गीत गाती मनभावनी ,
अद्भुत प्रत्यंग लुभावनी
मदिर-मदिर रागिनी,
छेड़ रही मलयानिल बयार।
सुगन्धिनी ,सुवासिनी,
स्वेद वस्त्रधारिणी,
उत्तानमुखी कुमुदिनी,
भीनी-भीनी सुहासिनी, उन्मादिनी
उन्मत्त भ्रमर डोले, पंक-अंक ताल।
कंपित अधरावली,
बिखरती अलकावली,
आस डूबते दृगताल,
कामिनी,अर्धान्गिनी,
ह्रद मंदिर दीपक जला,
बाट जोहती सुहागिनी,
आ रही चौथ करवा रात।
आ आ भी जा, अब ओ सजन ….
दे दे मुझे बैठती, इन साँसों की सौगात!!
शारदीय रात्रि
ले रहा मधु चुबंन, विधु मृदुल चाँदनी गात।
– डाॅकिरणमिश्रा स्वयंसिद्धा, नोएडा, उत्तर प्रदेश