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फरियाद – प्रदीप सहारे

हे बापू,

दोनों हाथ जोड़कर,

करता हूं नमन ।

करता हूं फरियाद ।

बापू !

तेरी धुंधली होती,

छवि के साथ ।

गोल चश्मा, तीन बंदर,

अंतिम शब्द ,

” हे राम “हैं याद ।

बस अब,

उसी को उलटा टांगकर,

करते हम,

आप से फरियाद ।

गोल चश्मे को,

उलटा रखकर ।

चला दिया ,

स्वच्छता अभियान ।

पोष्टर,गाजे बाजे के साथ,

दिन रात देते बयान ।

पर थुक कर सड़क पर,

महसूस करते अभिमान ।

नहीं ला पा रहें,

कूडा उठाने वाले के,

जीवन में सम्मान ।

चल रहा,

स्वच्छता अभियान ।

तीन बंदर संग थे,

तीन वचन,

“बुरा मत बोलो,

बुरा मत सुनो,

बुरा मत देखो ”

यह सब रख दिये,

बांध कर गठरी में ।

अपने बाहुबल का,

ड़र दिखाकर।

ना जाने कितने,

प्रतिबंधित शब्द,

जाते सुनाकर ।

सुनते हैं चुपचाप,

रिश्वत की लाचारी से

कानून की मजबूरी से ।

बुरा बोलना,

बन गयी हैं शान ।

ना सुनो बुरी बोली ।

चल जाती ,

बंदूक की गोली ।

बंद कर देते बोली ।

राम का नाम लेकर,

बजते हैं नगाडे ।

आज भी हैं हम,

उलटे हुए घडे ।

विश्व गुरु बनने की,

करते तो हैं बात ।

लेकिन,

भूत की कहानियाँ,

मंदिर के घंटे,

बाबर की मस्जिद,

राम का मंदिर  ।

नही देते साथ ।

बस,

यही हैं फरियाद ।

✍प्रदीप सहारे, नागपुर , महाराष्ट्र

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