हिन्दी धवल हिमालय जैसी,
हिन्दी गंगा जल की सागर ।
हिन्दी है कलरव पक्षी की,
हिन्दी है सौभाग्य की बिन्दी।
हिन्दी अपनी संस्कृति में लिपटी,
हिन्दी मानवता का पाठ पढ़ाती।
हिन्दी शब्दों का सागर है,
हिन्दी जन-जन की भाषा है।
हिन्दी की खुशबू चहुं दिशा में,
हिन्दी भारतीयों का जीवन है।
हिन्दी शब्द मधुर होते है,
हिन्दी सबको राह बताती।
हिन्दी संस्कारों की बोली है,
हिन्दी खेतों की माटी है।
हिन्दी होली और दीवाली है,
हिन्दी भारत मां की बोली है।
हिन्दी चम्पा और चमेली है,
हिन्दी बच्चों की अठखेली है।
हिन्दी पतित पावनी गंगा है,
हिन्दी राष्ट्रगान की बोली है।
हिन्दी में जीवटता होती है,
हिन्दी राष्ट्रीय तिरंगा है।
हिन्दी ऋषियों की भाषा है,
हिन्दी खेतों खलिहान सी है।
हिन्दी रोटी पानी जैसी होती है,
हिन्दी स्वाभिमानी और दानी है।
हिन्दी मंगल गीतों की माला है,
हिन्दी मलयागिरि का चन्दन है।
हिन्दी स्नेह का सागर है,
हिन्दी प्रीत भरी गागर है।
हिन्दी बच्चों की किलकारी है,
हिन्दी बागों की फुलवारी है।
हिन्दी मानवता का दर्पण है,
हिन्दी जीवन दायिनी भाषा है।
हिन्दी मन मंदिर की भाषा है,
हिन्दी जीवन की अभिलाषा है।
हिन्दी रामचरित मानस की भाषा,
हिन्दी भाषा की गौरव गाथा है।
– कालिका प्रसाद सेमवाल
मानस सदन अपर बाजार
रुद्रप्रयाग उत्तराखंड – 246171