भारत माँ के शीश महल की, राज दुलारी हिन्दी है,
भाषाएँ हैं और भी लेकिन, सब पे भारी हिन्दी है।
राष्ट्र भाषा का बहुत है, गौरवमयी इतिहास,
यह भाषा समृद्ध भाषा है, इसमें भरे पड़े अहसास ,
हिन्द वासियो गर्व करो पहचान तुम्हारी हिन्दी है।
भारत माँ के शीश महल की………
दिनकर, जायसी, शुक्ल, निराला, हिन्दी के रखवाले थे,
बच्चन, नीरज, पंत, नामवर, हिन्दी के मतवाले थे,
तुलसी, सूर, कबीर ने मिलकर बहुत निखारी हिन्दी है,
भारत माँ के शीश महल की………
हर भाषा में गुण हैं लेकिन हिन्दी गुणों का सागर है,
प्रेम, स्नेह ही भरा हो जिसमें, हिन्दी ऐसी गागर है,
एक किया है इसने सबको शान हमारी हिन्दी है।
भारत माँ के शीश महल की………
अंग्रेज़ी की धार में बहके चाहे आगे बढ़ना है,
बच्चों यह सौगन्ध है तुमको हिन्दी को भी पढ़ना है,
भारत की मर्यादा हिन्दी सबसे न्यारी हिन्दी है।
भारत माँ के शीश महल की………
आओ मिलकर क़दम-क़दम पर पुष्प खिलाएं हिन्दी के,
हर आँगन और मन-मंदिर में दीप जलाएं हिन्दी के,
मैं कवयित्री हिन्दी की हूँ मुझको प्यारी हिन्दी है।
भारत माँ के शीश महल की………
पूरे विश्व में भारत माँ की शान बढ़ाई हिन्दी ने,
एकता और अखण्डता की भी ज्योति जलाई हिन्दी ने,
उनको नमन है ‘फ़लक’ जिन्होंने ख़ूब संवारी हिन्दी है।
भारत माँ के शीश महल की………
डॉ. जसप्रीत कौर फ़लक, लुधियाना , पंजाब
(अध्यक्षा, साहित्यिक संस्था- कविता कथा कारवाँ (रजि.)