सर जहां पर था हमारा पैर कर आए हैं हम ।
मुल्क बटवारे में अपने गैर कर आए हैं हम ।
आब झेलम और सतलज का अभी तक लाल है ,
खून की बहती नदी में तैर कर आए है हम ।
तीन रंगों में छिपा इतिहास भी भूगोल भी ,
सिंध से लाहौर से भी बैर कर आए हैं हम ।
हूण हो मंगोल हों हम या मुगल हों जाट हो ,
दासता पिछली सदी में सैर कर आए हैं हम ।
देश बटवारा हुआ पर आम जन को क्या मिला ,
बाग लीची आम वाले कैर कर आए हैं हम ।
थान नानक देवता का और लव कुश के निशां ,
दान में अपने सभी ये दैर कर आए हैं हम ।
काश ऐसा पाक में भी कोई शायर सोचता ,
लाख सैनिक छोड “हलधर” ख़ैर कर आए हैं हम ।
– जसवीर सिंह हलधर , देहरादून