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दोहे – नीलू मेहरा

1

आई तिथि शुभ चौथ की, गणपति आये द्वार।

दिव्य रूप सुन्दर सजे, गल पुष्पों के हार।।

2

ऋद्धि-सिद्धि दाता तुम्हीं, हे गणपति गणराज।

प्रथम पूज्य तुम सर्वदा, करते पूरण काज।।

3

विघ्न विनाशक हे प्रभू, गौरी नन्दन लाल।

चमक रहा सिन्दूर से, भव्य अलौकिक भाल।।

4

बप्पा प्यारे आ गये, लगते वंदनवार।

ढोल – नगाड़े बज रहे, सजते अनुपम द्वार।।

5

घर आँगन सब से रहे, स्वागत करते लोग।

पूजन आराधन करें, और लगाते भोग।।

6

विघ्न हरे, मंगल करे, भक्त करें गुणगान।

एकदन्त के जाप से, मिलता है सम्मान।।

7

चालीसा के पाठ से, मिटते कष्ट अपार।

बाधायें सब दूर हो, मिले विजय का हार।।

8

धूप दीप से आरती, करते भक्त सुजान।

सारा जग है पूजता, गणपति बड़े महान।।

9

जयकारे से जता, गणपति का दरबार।

बप्पा प्यारे नाम से, होता है उद्धार।।

10

वक्रतुण्ड का नाम ही, विघ्नों का है काल।

मूषक वाहन है सजे, मस्तक मुकुट विशाल।

 – नीलू मेहरा, कोलकाता (प० ब०)

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