आशा की लौ से
हे बेकल मन
काली रात को रोशन कर ले |
सहला कर सब ज़ख्मों को
जीने की राह हासिल कर ले |
अब छोड़ दे
उन सब लम्हों को
जो अब तक धुंदले- धुंदले हैं |
छू ले आशा की वह मूक किरण
जो दबी निराशा के धुएँ में |
चाहत के सिकुड़े
पाँखों को फैला कर
तुम खो जाओ असीम गगन |
जुगनू सी रोशनी अपनाकर
जीवन से अंधेरा दूर करो |
हे मेरे बेकल मन
रोशनी का झीना मंज़र
तभी दिखाई देगा तुझको
गर, आशा की लौ से
ग़म की रात रोशन कर लें |
– डॉ • अनुराधा शर्मा
नौशहरा नाल बंदा
ज़िला पठानकोट पंजाब
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