खामोशियां भी बेअसर हो जाती है।
जब इंसानों में इंसानियत मर जाती है।
दूर तलक भीड़ में साथ चलना जरूरी नहीं।
सफर तन्हा हो तो भी मंजिल मिल जाती है।
किसी को इस कदर ना जगह दो जिंदगी में।
जरूरी नहीं कि शामिल हो सबकी हर खुशी में।
कोई दर्द तुमसे बाट ले जिंदगी हंसी हो जाती है।
खुशी होती है दिल में आंखों में नमी हो जाती है।
वक्त वक्त का भी ना हुआ आज तलक यारों।
गम फिर भी हर कदम पर हमनशीं हो जाती है।
यूं ही नहीं ये तन्हाई सुकून देती है यारों ।
दर्द की कई वजहों में भी कमी हो जाती है।
बेशक से तन्हा सफर मुश्किल है काटना पर।
साथ रहकर मेरे हर दर्द से हंसी हो जाती है।
मोहब्बत होती है हुनर से हर लम्हा उस पल।
मानों हर खुशी बस उसमें ही थमीं हो जाती है।
उफ़ नहीं करती यारों ये हसरतें लेकिन ।
ख्वाहिशों की हर बात गुनगुनी हो जाती है।
मानों वक्त ने कुछ वक्त दिया हो तुम्हें ।
हर आरजू तब नाज़नी हो जाती है ।।
– पूनम शर्मा स्नेहिल, जमशेदपुर