नई मंजिलें हैं नए काफ़िले हैं ।
नई राह जुडतीं नए फासले हैं ।।
गई छूट बस्ती जहां से चले थे ।
वहीं एक घर में सभी हम पले थे ।
पुराना जमाना कहाँ खो गया है ,
बनाते दिखें सब हवा में किले हैं ।।
नई मंजिलें हैं नए काफ़िले हैं ।।1
कहाँ गुम हुई हैं पुरानी प्रथाएं ।
कहाँ गुम हुई हैं सुहानी कथाएं ।
हमें वक्त की बद्दुआ लग गयी है ,
सगे कोख रिस्ते लगा अब हिले हैं ।।
नई मंजिलें है नए काफ़िले हैं ।।2
सभी बाल बच्चे बड़े हो गए हैं ।
सभी पांव अपने खड़े हो गए हैं ।
हमें देख कर भी न सहमें जरा से ,
नया है जमाना नए सिलसिले हैं ।।
नई मंजिलें हैं नए काफ़िले हैं ।।3
कहीं शुष्क मौसम कहीं तेज धारा ।
कहीं बाढ़ आयी कहीं शीत पारा ।
नया रोज मौसम चुनौती भरा है ,
सितारे डरे हैं समंदर हिले हैं ।।
नई मंजिलें हैं नए काफ़िले हैं ।।4
कहाँ से चले थे कहाँ आ गए हैं ।
हवा धूप पानी सभी खा गए हैं ।
अभी भी समय है जमीं को बचा लो ,
हुए क्षुब्ध “हलधर” नहीं बाबले हैं ।।
नई मंजिलें हैं नए काफ़िले हैं ।।5
– जसवीर सिंह हलधर, देहरादून