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नहीं सीखा मैंने रुकना – ममता जोशी

जीवन में सुख-दुख आया है,

घबराना सीखा नहीं मैंने,

हार कर कभी जीत गई तो,

जश्न मनाया है नहीं मैंने ।

 

फूलों सी चाहत की मैंने,

कांटे मिले हैं राहों में,

मंजिल देखी सब ने मेरी,

कांटक नहीं देखे पांवों में ।

 

मुस्कान सभी ने देखी मेरी,

उसके पीछे गम नहीं देखा,

संघर्षों से लड़ना सीखा,

हर इक बाधा को कम देखा ।

 

बाधाओं की कमी नहीं है,

जीवन के हर मोड़ में,

चलते रहना सीखा मैंने,

मंजिल की हर दौड़ में।

 

चलते रहना-चलते रहना,

रुकना कभी न सीखा मैंने,

मीलों दूर है चलना हमको,

कभी न थकना सीखा मैंने ।

– ममता जोशी स्नेहा

सुजड़ गांव प्रताप नगर

टिहरी गढ़वाल उत्तराखंड

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