मनोरंजन

प्रवीण प्रभाती – कर्नल प्रवीण त्रिपाठी

मोहन की मुरली मनभावन चित्त अनेक लुभाय रही है

होंठ लगे उपजे सुर मादक वो मधु को बरसाय रही है।

गोपिन गोप सखा सँग धेनु खगों तक को भरमाय रही है।

कृष्ण पिया बन के बँसुरी सौतन सी सबको सताय रही है।

 

मोहन माधव हैं चितचोर धरें बहु रूप सदा बहलाते।

कर्म करें फल चाह बिना यह गूढ़ रहस्य हमें सिखलाते।

मुक्ति हमें किस भाँति मिले उनके उपदेश यही बतलाते।

निश्छल प्रेम भरा जिसमें उसको मुरलीधर हैं अपनाते।

 

माखनचोर सखागण संग कभी दधि माखन खूब चुराते।

फोड़त कंकर से गगरी जल से नहला कर वे छिप जाते।

ग्वालिन जाकर देत उलाहन मातु समक्ष नहीं वह आते।

ले बदला वह प्रीति भरा सब के सँग मोहन धूम मचाते।

– कर्नल प्रवीण त्रिपाठी, नोएडा, उत्तर प्रदेश

Related posts

अधूरापन – सविता सिंह

newsadmin

सर्जन की चिड़ियाँ – डॉ. सत्यवान सौरभ

newsadmin

प्रसिद्ध दिव्यांग साहित्यकार सुरेश चन्द्र ‘सर्वहारा’ को काम आया आत्म विश्वास – डॉ.सत्यवान सौरभ

newsadmin

Leave a Comment