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कविता – जसवीर सिंह हलधर

निर्णय ले आया घट घट नया उजाला ।

अब राम लला का मंदिर बनने वाला ।।

 

अपने सिर पर अब पाप नहीं ढोएंगे ।

अरि के शोणित से ही कलंक धोएंगे।।

 

सस्ती सुकीर्ति पाकर जो फूल रहा है ।

वो पैंसठ और इकत्तर, भूल रहा है ।।

 

वो आतंकी हमको क्या समझे बैठे ।

जो पाक ,चीन के दम पर रहते ऐंठे ।।

 

ये भारत अब पहले सा नहीं सरल है ।

छूकर तो देखो बहती हुई अनल है ।।

 

ठंडा करना है क्रोध प्रबुद्ध  प्रजा  का ।

मुल्लों को समझा देंगे धर्म ध्वजा का ।।

 

खोई  निष्ठा अब  दुनियां  में  पाने को ।

भारत अब दौड़ रहा आगे आने को ।।

 

चीनी चूहों  के दंत बड़े घातक हैं ।

घर में भी तो गद्दार खड़े पातक हैं ।।

 

कुछ ढोंगी मज़हब की आयत पढ़ते हैं ।

जो रोज धर्म  के नए  नियम  गढ़ते हैं ।।

 

जिनको भारत माता की लाज न प्यारी  ।

घर में ही कुछ बैठे  हैं  अत्याचारी ।।

 

कुछ  नेता मुल्ले नंबरदार बने  हैं ।

कुछ पाक देश के पैरोकार बने है ।।

 

जो आतंकी को मित्र कहा करते हैं ।

वाणी से जिनके  गरल बहा करते हैं ।।

 

विघटन की बातें करते नेपाली को ।

भारत ढकता है जिसकी कंगाली को ।।

 

फारुक आतुर है जिसके घर जाने को ।

वो खुद भूखा है अन्न नहीं खाने  को ।।

 

जिनकी वाणी में गरल घुला है यारो ।

ऐसे मक्कारों को मिलकर  ललकारो ।।

 

यदि कोई अपना  चलता  रथ  रोकेगा ।

तो भारत उसको घर में घुस ठोकेगा ।।

 

सर तन से जुदा जैसे मत बोलो नारे ।

क्या नबी बनाता है तुमको हत्यारे ।।

 

सुलगेगा इससे राख दबा अंगारा ।

छोटी छोटी बातों से करो किनारा ।।

 

भाषा की मर्यादा को मत तोड़ो रे ।

भारत के रथ को सही दिशा मोड़ो रे ।।

 

हलधर”कविता अंगारा है सच मानो  ।

घर में  बैठे दुश्मन को भी पहचानो  ।।

– जसवीर सिंह हलधर, देहरादून

 

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