सोया काहे उठ जाग अभी,
जगको दिखलाना कारिगरी।
क्या स्वर्ग नर्क की बात करे,
बेकाम किसी का मोल नहीं।।
पुरुषार्थ बड़ा करनी भरनी,
नित पार लगाये बैतरणी
जैसी करनी वैसा मिलता,
मानों बातें नत कर धरनी।
कहो स्वर्ग नर्क दिखता कहीं,
बेजान बदन पहचान नहीं।
निष्प्राण बदन तो जल जाता,
सब रह जाता अंजान यहीं।
हर सांसें भ्रम में है उलझी,
सब बोल रहें अपने मन की।
सब ज्ञान बघारें जहाँ तहाँ,
व्याकुल लगता मन का पंछी।
चिंता छोड़ो बन सुगामी,
जलने वाला तो अभिमानी।
मन में रहता है राग द्वेश,
जीवन जीता झूठी शानी।
बिंदास जियो तज नादानी,
तन-मन होगा पानी पानी।
यह समय काल का फेरा है,
काहे भटके जगो अज्ञानी।
– अनिरुद्ध कुमार सिंह
धनबाद, झारखंड