ऐसी बंशी बजाना मेरे मोहन,
राधिका बन जाएं जीवन।
जैसे फूल को भौंरे नहीं छोड़ते,
छोड़े न वैसे तुझको मेरा मन।
ऐसी धुन सजाना मेरे मोहन,
सांसें बन जाएं मेरी मधुबन।
सारे श्रृंगार करना मेरे सामने,
बन जाऊं मैं तेरा सांवरे दर्पन।
ऐसी स्वर लहरी तानना मेरे मोहन,
घुंघरू सी बज जाएं मेरी धड़कन।
– कवि संगम त्रिपाठी, जबलपुर मध्य प्रदेश