मनोरंजन

गज़ल – झरना माथुर

हसरतें है यही तेरी उल्फ़त निभायेंगे हम

रंजिशे हो कही ये मुहब्बत निभायेंगे हम

 

इस चमन में कही कोई अपना नही है रहा

आरज़ू है मेरी ये बगावत निभायेंगे हम

 

ये शहर ए दिल तो बस गमों मे उजड़ा एक मुद्दत

इन्तेहा-ए-करार की उस चाहत को निभायेंगे हम

 

आज दर-ओ-हरम ही ठिकाना हो गये मेरे

पावँ के आबलो की हिफाजत निभायेंगे हम

 

इश्क़ “झरना” बड़ा भारी पत्थर कहा ये उठे

अपनी जू गर्दबाद में शराफत निभायेंगे हम

दर-ओ-हरम – मन्दिर-मस्जिद

आबले – छाले

अपनी जू गर्दबाद – संसार रुपी शराब

– झरना माथुर, देहरादून , उत्तराखंड

Related posts

गजल – रीता गुलाटी

newsadmin

भगवान महावीर का अर्थशास्त्र (महावीर जयंती) – गणाधिपति तुलसी

newsadmin

गीत – जसवीर सिंह हलधर

newsadmin

Leave a Comment