मनोरंजन

गजल- रीतू गुलाटी

भूल कर वजूद स्वार्थ बोने लगा।

आदमी जब आदमी होने लगा।।

 

सजा ली  है स्वार्थों की मंड़ी।

रिश्तो को वो अब  खोने लगा।।

 

हो गया है काहिल वो इतना

देर तक वो अब सोने लगा।।

 

नही अदब,छोटे बड़े का अब।

आज अपनो से आदर खोने लगा।

 

कुछ भी कहना बेकार है यारो।

सच्चाई से आदमी दूर होने लगा।।

 

करके फर्क अपने व गैरो में।

नफरत के बीज बोने लगा।।

 

ऐ खुदा इस कहर से तू ही बचा।

ये देख,ऋतु का मन रोने लगा।।

– रीतू गुलाटी ऋतंभरा, चंडीगढ़

Related posts

सशक्त हस्ताक्षर की 8वीं काव्य गोष्ठी सफलता पूर्वक संपन्न

newsadmin

हरियाणा के लोक गीतों में राखी – डॉ. रामसिंह यादव

newsadmin

कविता (हयात) – रोहित आनंद

newsadmin

Leave a Comment