तुम्हारी सादगी ही यादों में खींच के लाई,
सुनहरी यादें हमेशा के लिए निखर गई।
बहुत खूबसूरत है तुम्हारी यादों की गली,
दिल की चाह हमने, तुम्हारी यादों में पाई।।
शाम का सुरमयी नज़राना यादों में दे गई,
तुम हर पल का अहसास यादों में दे गई।
तुम्हारी चांदनी ज़िंदगी भर यूँ मिलती रहे,
जैसे ‘राधे श्याम’ के प्रेम का पैग़ाम दे गई।।
भावरूपी मझधार में कश्ती मेरी उलझ गई,
सनम तुम्हारी ‘सुनहरी यादें’ हमें समझा गई।
दुनिया वाले बेशक़ न समझें हमारी प्रीत को,
तुम ‘सुनहरी याद’ बन सौ-सौ दीप जला गई।।
तनमन की सुगंध से तुम लिखना सीखा गई,
मन की डायरी में मिलन की आस जगा गई।
मन बहकने सा लगता है, तुम्हारा दीदार पाने,
मन के कोने-कोने में, भाव फिर से जगा गई।।
बीते पलों को संजोकर तुम रुख़्सत तो हुई,
उन्हीं पलों की सुगंध की सौगंध हमें दे गई।
यादों के दीप को “सुनहरी यादों” में जला गई,
जन्मों की #संगनी हो मेरी तुम कहीं नहीं गई।।
—-विनोद_शर्मा ‘विश’, दिल्ली