अगर आज तुम इस अवस्था में हो,
तो इसके सृजन की भूमिका में,
मूलकर्मी और कर्ता कौन है,
यही प्रश्न विचारणीय है,
मैं यही सोचता हूँ ,
मेरी सन्तुष्टि इसी में है।
तुम जानते हो कि
मैंने ऐसा क्या कहा है,
अगर खामोश हूँ मैं आज,
तो पक्षकार हूँ तेरी खुशी का,
मैं समझ रहा हूँ सच को,
तेरी भंगिमा और नजर को,
मेरी सन्तुष्टि इसी में है।
क्या नहीं किया तुम्हारे लिए,
कब नहीं झुका हूँ तुम्हारे लिए,
कब नहीं बहाये ऑंसू मैंने,
तुम्हारी खुशी के लिए,
किसको नहीं बनाया दुश्मन,
तुम्हारी इज्जत के लिए मैंने,
मेरी सन्तुष्टि इसी में है।
किससे नहीं तोड़ा मैंने रिश्ता,
सदा तेरा साथ निभाने के लिए,
अब बहा रहे हो ऑंसू तुम,
तलाश और पुकार रहे हो मुझको,
और मैं दूर जा रहा हूँ तुमसे,
इसलिए कि कुछ नहीं मिलेगा तुमसे,
मेरी सन्तुष्टि इसी में है।
गुरुदीन वर्मा.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)
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