विषम परिस्थितियाँ हर समय बेकार नहीं होती ,
महिमामंडित करती हैं जिन्दगियाँ,
अमृत रस घोलता है अपमान का विष,
ज़िंदगी कभी ऐसी बेकार नहीं होती !
रामबोला का माता पिता से त्याग हो जाना,
प्राण प्रिया रत्नावली का कठोरता से दुतकारना,
नरहरी हुलसी जैसों से ग़र ना मिल पाता,
तुलसी की ज़िंदगी युँ सुन्दर साकार नहीं होती!
पीड़ा से ही तो पर पीड़ा को समझ पाया,
मर्म ज़िंदगी का हर पल समझ पाया,
ख़ुशियों को उनके ग़र रेता नहीं जाता ,
कविता में इतनी धार नहीं होती !
घोल विष पी गए अपमान वो ,
तज मान जुड़ गए राम से वो ,
रिश्तों से ग़र उजाड़े नहीं गए होते ,
आत्मा राम से तार नहीं होते !
ग्रंथ महाग्रंथ रचते गए ,
मोह ग्रंथी से बचते गए,
काँटों में फँस कर ग़र ना जीते ,
नारायण के गले का हार नहीं होते !
तुलसी रस “रश्मि “ को भावे ,
रोम रोम राम घुल जावे,
प्रेरणा तेरी ग़र जीवन में ना उतरती ,
“तुलसियों” की जिन्दगियों में काव्य की उपहार न होती !
– रश्मि सिन्हा “शैलसूता”, ऑटवा, कनाडा