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रे आज़ादी – रश्मि शाक्य

राह तुम्हारी देख आंख पथराई, रे आज़ादी !

पर तुम कभी नहीं मेरे घर आई, रे आज़ादी !

 

जाने कितने अरमानों की

हमने चिता सजाकर ,

ममता स्नेह सुनहरे सपने

और सिंदूर जलाकर ,

बड़ी तपस्या करके तुमको पाई, रे आज़ादी !

पर तुम कभी नहीं मेरे घर आई, रे आज़ादी !

 

झोपड़पट्टी पर गरीब के

तरस न तुमको आता ,

ऊंचे – ऊंचे प्रासादों में

रहना बस है भाता ,

बस सफेदपोशों के घर इतराई, रे आज़ादी !

पर तुम कभी नहीं मेरे घर आई रे आज़ादी !

 

सर्दी धूप और वर्षा सह

भले फसल है बोता ,

मगर खेत की मेड़ों पर

भूखा किसान है सोता ,

उसकी लाचारी पर तरस न खाई, रे आज़ादी !

पर तुम कभी नहीं मेरे घर आई, रे आजादी

– रश्मि शाक्य, गाजीपुर, उत्तर प्रदेश

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