श्रावण शुक्ल सप्तमी को,
जन्म लिए बाबा तुलसी।
आत्मा राम पिता हुए,
मां उनकी थीं हुलसी।
दांत सहित था जन्म लिया,
सब ने कहा अपशगुनी।
देख उन्हें सब करें किनारा,
कोई नहीं उनका आधारा।
ताने सुन सुन बड़े हुए ,
पर मिल न सका था ज्ञान।
गुरुदेव से मिली जो शिक्षा,
बने प्रकांड विद्वान।
हुआ विवाह रत्ना से,
मन मे थे हर्षाये।
प्यासी धरती पर जैसे,
झूम के वर्षा आये।
रत्ना पर उनकी आसक्ति,
दिन प्रतिदिन थी बढ़ती।
उसके बिना उनकी ,
एक सांस भी न चलती।
इस आसक्ति से रत्ना,
शर्मिंदा थी होती।
काली रात भयानक थी वह,
रत्ना ने उन्हें था कोसा।
इस हाड़ मांस की काया,
पे ऐसी क्या आसक्ति।
भज लो ईश को और
करो तुम उनकी इतनी भक्ति।
एक वाक्य ने बदल दिया,
तुलसी दास का जीवन।
छोड़ दिया घर द्वार को उनने,
पाने राम के चरण।
राम नाम को जपते-जपते,
काशी थे जा पहुंचे।
राम कथा का गान किया,
रच दिया था मानस।
राम कथा जग को है सुनाई,
राम चरित मानस में।
अमर हुई वह राम कथा,
संग अमर हुए थे तुलसी।
अंतिम पल सन 1680,
दरश मिले श्री राम के।
तज दी उसने नश्वर काया।
जा पहुंचे वो राम धाम को।
ऐसे कवि को करते हम,
बारम्बार आज नमन।
हे युग के निर्माता तुलसी,
तुमको बारम्बार नमन ।
– निहारिका झा,खैरागढ़ राज.(36 गढ़)