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वक्त – जया भराड़े, बड़ोदकर

वक्त से कौन बड़ा ?

वक्त ही देता है

जख्म और

मरहम भी यही लगाता है।

कितने ही बिखर गए

जीवन,

कितने ही संभल गए

जीवन,

आंधी तूफानों की चपेट में

आकर कई सपने

देखने के पहले ही

चकना चूर हो गए।

वक्त ही तो हे जहां में

इस अजब ग़जब की घडी में,

कुछ अलबेले ही

सफल हो गए

नसीब बदले ना बदले

जीत हार की तरह

वक्त अंजाम तक

सब कुछ बदल गए।

वक्त ही अपने आप,

ईश्वर सम है,

और उससे कोई बड़ा नहीं

वह सिद्ध कर देता है।

वक्त में सफल हुए वही

जो सब्र की सीमा से पार हो गए,

अन्यथा दुनिया की

इस भीड़ में हर कोई

खो गए।

– जया भराडे बडोदकर

न्यू मुंबई, महाराष्ट्र

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