मनोरंजन

गज़ल – झरना माथुर

नजरों की अदाये क्या कहिये,

इनकी भी वफाये क्या कहिये।

 

मिलती सभी से टिकती किसी पे,

इस दिल की जफाये क्या कहिये।

 

नजरे जो नज़र से मिल गयी है,

जुल्फ़ो की घटायें क्या कहिये।

 

ये कातिल जख़्म भी गुलजारे हुस्न हो,

तब उनकी सदाये क्या कहिये।

 

जब हो ये मुकम्मल इश्क़ नसीबा,

“झरना ” भी लजाये  क्या कहिये।

झरना माथुर, देहरादून, उत्तराखंड

Related posts

दोहे – मधु शुक्ला

newsadmin

माँ तो माँ होती – रेखा मित्तल

newsadmin

कविता (चेतावनी)- जसवीर सिंह हलधर

newsadmin

Leave a Comment