चली आओ अम्बे, बड़ी गड़बड़ी है,
जरूरत सभी को, तुम्हारी पड़ी है।
पढ़ाया लिखाया, जिन्हें था खिलाया।
नजर से उन्हीं ने, हमको गिराया।
लेकर शिकायत, माता खड़ी है…… ।
चली आओ अम्बे…..
कम है कमाई, खर्चे अधिक हैं।
बने भावनाओं के, हम वधिक हैं।
पिता कह रहा दुख, दुखद अति घड़ी है…… ।
चली आओ अम्बे……
विदा कर पिता ने, हमको भुलाया,
ससुराल कहता है, हमको पराया।
सुता के नयन से, लगी अश्रु झड़ी है….. ।
चली आओ अम्बे…..
पैसे बिना ज्ञान, मिलता नहीं है।
बिना नौकरी काम चलता नहीं है।
नित बेटा कहे, जिंदगी यह सड़ी है….. ।
चली आओ अम्बे….. ”
— मधु शुक्ला. सतना, मध्यप्रदेश.