मनोरंजन

लोकगीत – मधु शुक्ला

चली आओ अम्बे, बड़ी गड़बड़ी है,

जरूरत सभी को, तुम्हारी पड़ी है।

 

पढ़ाया लिखाया, जिन्हें था खिलाया।

नजर से उन्हीं ने, हमको गिराया।

लेकर शिकायत, माता खड़ी है…… ।

चली आओ अम्बे…..

 

कम है कमाई, खर्चे अधिक हैं।

बने भावनाओं के, हम वधिक हैं।

पिता कह रहा दुख, दुखद अति घड़ी है…… ।

चली आओ अम्बे……

 

विदा कर पिता ने, हमको भुलाया,

ससुराल कहता है, हमको पराया।

सुता के नयन से, लगी अश्रु झड़ी है….. ।

चली आओ अम्बे…..

 

पैसे बिना ज्ञान, मिलता नहीं है।

बिना नौकरी काम चलता नहीं है।

नित बेटा कहे, जिंदगी यह सड़ी है….. ।

चली आओ अम्बे….. ”

— मधु शुक्ला. सतना, मध्यप्रदेश.

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