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आज के दिन – प्रीती शर्मा

आज ही …के दिन

अनगिनत उम्मीदों ने दम तोड़ा था ।

मैं किस रब से जाकर पूछता।

सबसे पहले उसी ने विश्वास तोड़ा था।

 

आज ही के दिन अनगिनत उम्मीदों ने दम तोड़ा था ।

सुना था उम्मीदों पर…जिंदगी कायम रहती हैं ।

कुछ भी ना हो लेकिन एक उम्मीद कुछ होने की हमेशा कायम रहती हैं।

जिंदगी चलती ही चली जाती है इस उम्मीद….. पर ।

क्या पता…..अगली राह पर मंजिल नसीब होती है।

 

आज ही के दिन…. देखा हर उम्मीद को,

मंजिल………..कहाँ नसीब होती है।

इंतजार इतना लंबा गया….और देखता हूं …..

हर उम्मीद की सिर्फ  दर्दनाक मौत होती है।

 

आज के दिन से ,

आज ही ……..के दिन तक।

अब उम्मीदों को छोड़ चुका हूँ।

 

कितना बिखरा उस दिन से ,

आज तक के दिन तक ।

उन टुकड़ों को चुन- चुन कर जोड़ चुका हूँ।

अब उम्मीदों के वहम नहीं पालता।

चल रही है जिंदगी ….जैसी चलती है।

उम्मीदों के हवा महल पर खड़ा होकर,

जिंदगी के बेहतरीन वक्त का चेहरा नहीं निहारता ।

– प्रीति शर्मा ‘असीम’ , नालागढ़, हिमाचल प्रदेश

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