सुबह सुबह,
नागपंचमी का दिन।
मिलें नागराज ।
मैंने कहा,
“कैसे हो महाराज ,
आपके तो हैं मजे,
पहले करते थे,
राजाओं के ,
धन की रखवाली ।
मंदिर,खंडहर,
कोई जगह न खाली ।”
अब,
आप बताओं ,
अपनी कहानी,
अपने जुबानी ।
नागराज बोले,
” क्या बताऊं भाई,
अपनी कहानी तो हैं,
आधी हकीकत ,
आधा फसाना ।
नहीं बदला बस,
अभी भी जमाना ।
पहले करता था,
राजाओं,धनकुबेरो के,
धन की रखवाली ।
तब चलता था,
मुझ पर गरुड़ मंत्र ।
मंत्र के आगे मैं,
हो जाता था शक्तिहीन ।
अब करता हूं,
लुटी हुई जनता के,
धन की रखवाली ।
जो रखते,
नेता, मंत्री ,
मंत्री के साला – साली,
उनके भी घर,
कोई जगह,
नही रहती खाली।
अब मंत्र की जगह,
ईडी तंत्र ने है ली ।
आते हैं वाहनो में भरकर,
ले जाते वाहनो में भरकर ।
यह सब,
एक झटके में कहा,
तो सांस भर आयी।
लंबी सांस लेकर,
फिर धीरे से बोला भाई,
मैं तब भी था शर्मिदा ।
आज भी हूं शर्मिदा ।
क्या करुं,
मेरा भी हैं धंदा ।”
वह फन पटकर,
हो गया आंखों से दूर।
मैं भी,
देखता रहा,
होकर मज़बुर …
✍️प्रदीप सहारे, नागपुर , महारष्ट्र