जबां पर मोहब्बत बगल में छुरी का,
चलन है यही अब मिलन की घड़ी का।
नहीं व्यक्ति की हैसियत कुछ यहाँ पर,
बजन नप रहा जेब बल की छड़ी का ।
न माना कहा सिर्फ बेटी बहू को,
दिया नाम केवल सुता को परी का।
बसाया सजाया सदन को जिन्होंने,
न जिन्दा रहा नाम घर में उन्हीं का।
न कुछ साथ जाये पता यह सभी को,
रखें लक्ष्य धन ही सभी जिंदगी का।
✍️ मधु शुक्ला. सतना, मध्यप्रदेश .