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नारी हूँ मैं – राधा शैलेन्द्री

पंचतत्व से बनी मैं एक नारी

खुद में समेटे हुए हूँ

जल,अग्नि,वायु,पृथ्वी,आकाश!

 

मैं नारी हूं,मैं संघर्ष हूं

कला हूँ मैं, मैं ही हूँ संकल्प और

साक्षी भी,

मैं प्यार हूँ

मैं शक्ति हूँ, भक्ति भी हूँ मैं

मैं ही हूँ आस्था भी।

 

व्यवस्था की नींव हूँ मैं

भ्रांति और क्रांति भी मैं ही हूँ।

 

माया और ममता भी मेरी निष्पत्तियां हैं और

धैर्य हूँ मैं

मैं ही हूँ अग्नि

और मोम भी हूँ मैं ही।

 

मैं हूँ धरा

कल्पना भी हूँ मैं ही,

मैं ही ‘सत्य’ भी हूँ

मैं हीं आदि हूँ

अंत का निष्कर्ष भी हूँ मैं ही।

 

मैं ही हूँ सृष्टि की परम् उपलब्धि;

जाने क्या क्या

और

क्या नहीं हूँ मैं

किन्तु फिर भी विडंबना यह है कि

जन्मदात्री धात्री होकर भी

अपने परिचय

अपने अस्तित्व की

तलाश में व्याकुल हूँ मैं।

 

सबकी “मुक्ति” का

मार्ग प्रशस्त करने वाली,

 

पुनः पुनः

प्रकृति को विन्यस्त करने वाली मैं हूँ;

अपनी अस्मिता की संरक्षा के लिए

भीता सीता सी

अंततः एक नारी बेचारी।

फिर विलीन हो जाऊँगी

इसी पंचतत्व में!

-राधा शैलेन्द्र, भागलपुर

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