तुम्हें कहें संस्कृत सुता, जन -जन पर है राज |
भगिनी को भी ले चले,कितना बढ़िया काज ||
बैर किसी से है नही, रखती है समभाव |
सदा संग सब के रही, ऐसा मधुर स्वभाव ||
तुम्हीं सिंधु साहित्य हो ,भारत का अभिमान |
तुम्हीं बढ़ाती ही रही , हिन्द देश का मान ||
साधक हिन्दी के बने हम सब की पहचान |
चमके हिन्दी विश्व में ,यही हमारी शान
हिन्दी में हो काज सब , हिन्दी का ही गान |
बने राष्ट्रभाषा सदा,हम सबका आह्वान ||
– कामिनी व्यास रावल, उदयपुर, राजस्थान