खुश रंगों के पल तो थोड़े,,वो कम दे गया।
मिला ज़िंदगी की शाम में,पर, दम दे गया।
वारुं गीत सभी मैं उसके,प्रेम भरे स्पंदन पर,
मन की वीणा छूकर,वो प्रीत सरगम दे गया।
पुरवा पवन झकोरों से दिन दर्दीले हुये हमारे,
गंध चुरा फूलों से,वो मधुमासी मौसम दे गया।
उम्र दुपहरी तपता सूरज,जब हुये रेतीले दिन,
तपते रिसते घावों पे,छुवन की मरहम दे गया।
वर्षा बिजली बादल की छाई थी घनघोर घटा,
मेरे सावन को वो,,आंखों की शबनम दे गया।
रूप -रंग-नाम बताऊँ.यह छल मैं कैसे कर दूं,
वो सलोने बांकपन की,मुझको कसम दे गया।
– राजू उपाध्याय , एटा, उत्तर प्रदेश