उत्तराखण्ड

कुल देवी-देवता, क्यों करें इनकी पूजा?

neerajtimes.comदेहरादून। हमारे यहां समाज और जाति के अनुसार अलग-अलग देवी-देवताओं की पूजा की जाती है। भारतीय लोग हजारों वर्षों से अपने कुल देवी और कुल देवता की पूजा करते आ रहे हैं।
जन्म, विवाह आदि मांगलिक कार्यों में कुलदेवी या देवताओं के स्थान पर जाकर उनकी पूजा की जाती है या उनके नाम से स्तुति की जाती है। इसके अलावा एक ऐसा भी दिन होता है जबकि संबंधित कुल के लोग अपने देवी और देवता के स्थान पर इकट्ठा होते हैं और सामूहिक रूप से अपने कुल देवता की पूजा करते हैं। जब हमारे कुल अलग है तो स्वाभाविक है कि कुलदेवी-देवता भी अलग-अलग ही होंगे। हजारों वर्षों से अपने अपने कुल को संगठित करने और उसके अतीत को संरक्षित करने के लिए ही कुलदेवी और देवताओं को एक स्थान पर स्थापित किया जाता था। वह स्थान उस वंश या कुल के लोगों का मूल स्थान होता था।
प्राचीनकाल से ही तीर्थ पुरोहित या पंडे आपके कुल और गोत्र का नाम अंकित करते हैं। आपको अपने परदादा के परदादा का नाम नहीं मालूम होगा लेकिन उन तीर्थ पुरोहित के पास आपके पूर्वजों के नाम लिखे होते हैं। उनसे भी आपको अपने कुल और कुल देवता का पता चल सकता है। प्रत्येक हिन्दू परिवार किसी न किसी देवी, देवता या ऋषि के वंशज से संबंधित है। यह उसके गोत्र से यह पता चलता है कि वह किस वंश से संबधित है। मान लीजिए किसी व्यक्ति का गोत्रा भारद्वाज है तो वह भारद्वाज ऋषि की संतान है। इस प्रकार हमें भारद्वाज गोत्र के लोग सभी जाति और समाज में मिल जाएंगे। इसके अलावा किसी कुल के पूर्वजों के खानदान के वरिष्ठों ने अपने लिए उपयुक्त कुल देवता अथवा कुल देवी का चुनाव कर उन्हें पूजित करना शुरू किया और उसके लिए एक निश्चित स्थान पर एक मंदिर बनवाया जिससे एक आध्यात्मिक और पारलौकिक शक्ति से उनका कुल जुड़ा रहे और वहां से उसकी रक्षा होती रहे।
कुलदेवी या देवता कुल या वंश के रक्षक देवी-देवता होते हैं। जो घर-परिवार या वंश-परंपरा के प्रथम पूज्य तथा मूल अधिकारी देव होते हैं। अतः प्रत्येक कार्य में इन्हें याद करना आवश्यक होता है। इनका प्रभाव इतना महत्वपूर्ण होता है कि यदि ये रुष्ट हो जाएं तो हनुमानजी के अलावा अन्य कोई देवी या देवता इनके दुष्प्रभाव या हानि को कम नहीं कर सकते या रोक नहीं लगा सकते।
कहा जाता है कि कालांतर में परिवारों के एक स्थान से दूसरे स्थानों पर स्थानांतरित होने, धर्म परिवर्तन करने, आक्रांताओं के भय से विस्थापित होने, जानकार व्यक्ति के असमय मृत होने, संस्कारों का क्षय होने, विजातीयता पनपने, पाश्चात्य मानसिकता के पनपने और नए विचारों के लोगों या संतों की संगत के ज्ञानभ्रम में उलझकर लोग अपने कुल खानदान के कुल देवी और देवताओं को भूलकर अपने वंश का इतिहास भी भूल गए हैं।
कुल देवी-देवता की पूजा छोड़ने के बाद कुछ वर्षों तक तो कोई विशेष परिवर्तन नहीं होता, लेकिन जब देवताओं का सुरक्षा चक्र हटता है तो परिवार में घटनाओं और दुर्घटनाओं का योग शुरू हो जाता है, सफलता रुकने लगती है, गृह कलह, उपद्रव व अशांति आदि शुरू हो जाती हैं और वंश आगे चल नहीं पाता है।

 

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