देखो सावन आया रे, मनभावन आया।
मेघ पानी लाया रे, बरखा बन के छाया।
बागों में झूला झूले,
गाये मेघ- मल्हार।
जंगल में मोर नाचे,
आयी कैसी ये बहार।
देखों सावन आया रे, मन भावन आया।
धानी चुनरी ओड़ के मै,
छुप-छुप कर आऊँ।
खन-खन करती कंगन से,
सजना को सताऊँ।
प्रीत का त्योहार आया,
साजन सावन आया।
देखों सावन आया रे, मनभावन आया।
– झरना माथुर, देहरादून , उत्तराखंड