सूरत तिरी देखी बवाल होने लगा।
तेरी कहानी का ज़वाल होने लगा। ।
किसको पड़ी हालात की अब तो फिकर।
बैचेन है ,मन को मलाल होने लगा।।
जीते रहे घुँट घुँट के अकेलेपन मे।
शायद उसे मेरा ख्याल होने लगा।।
जाऊँ अकेली कौन सी राह पर मैं।
तन्हाई मे, दिल यूँ बेहाल होने लगा।।
क्या मैं करूँ शिकवे उनसे ऋतु तन्हा।
अब तो हकीकत मे विसाल होने लगा।।
– रीतूगुलाटी. ऋतंभरा,चंडीगढ़, मोहाली