याद आये कोई बात, पुरानी तो बेहिचक कहना,
सहलाये जो शीतल रुत मस्तानी तो बेहिचक कहना।
साँझ उतरते ही उतर आऊँ, जो तेरी साँसों में,
महकायें मेरी कुछ बातें तेरी पेशानी तो बेहिचक कहना,।
ठहरी सी पलकों में जब कोई ख्वाब पले,
भोर में याद बन जायें कोई कहानी तो बेहिचक कहना।।।
बरसने लगे सावन की बदली सी जब दो आँखें,
उतरे नस नस में कोई पीर, पुरानी तो बेहिचक कहना।
उमड़ती काली सी कोई घटा जब दे दिल पर दस्तक,
लाये संदेश पुरवा कोई, सुहानी तो बेहिचक कहना।।
– डा किरणमिश्रा स्वयंसिद्धा, नोएडा , उत्तर प्रदेश