बेकसूर और मूक इन पशुओं की, ऐसे ना करें कुर्बानी हम।
हमारी तरहां इनको जीने दे,बचाये इनकी जिंदगानी हम।।
बेकसूर और मूक इन पशुओं————–।।
निभाने को रस्म कभी कोई हम, बने नहीं हम निर्दयी।
बचाने को अपनी झूठी शान को, इनकी बलि कभी नहीं।।
बनाने को खुद को आबाद ,नहीं करें इनकी कुर्बानी हम।
बेकसूर और मूक इन पशुओं————-।।
क्यों बन गए ऐसे हिंसक हम,क्यों भूल गए दया का धर्म।
ये भी तो ईश्वर का वरदान है,क्यों बन गए ऐसे हम बेशर्म।।
करें हम उपकार इन जीवों का, नहीं दे इनकी कुर्बानी हम।
बेकसूर और मूक इन पशुओं————–।।
अपने पाप और अवगुणों की, कुर्बानी दे अपने जीवन में।
बुराई की मंजिल हम छोड़कर, नेकी पर चले जीवन में।।
छुपाने को अपने दोषों को , नहीं इनकी करें कुर्बानी हम।
बेकसूर और मूक इन पशुओं—————।।
– गुरुदीन वर्मा आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां (राजस्थान)