छोटी सी यह जिंदगी, दूर लगे है गाँव।
लम्बे टेढ़े रास्ते, थक जाते है पाँव।।
डेग बढ़ाते जा रहें, हर मौसम बदलाव।
आँधी,पानी से लड़ें, धूप या कहीं छाँव।।
अभिलाषा मन में उठे, पाते शीतल ठांव।
व्याकुलता परवान पर, रह रह के भटकाव।।
जीवन अपने रंग में, तरह तरह के भाव।
मनमानी अपनी करें, देखे हरदम दाव।।
जाना है सब जानते, अजबे-गजबे चाव।
मन बैरागी नभ उड़े, कोई नहीं लगाव।।
– अनिरुद्ध कुमार सिंह, धनबाद, झारखंड