मनोरंजन

गीत – जसवीर सिंह हलधर

राग दीपक गा रही ऐसा भजन है जिंदगी ।

आंधियों की गोद में बैठा पतन है जिंदगी ।।

 

आँसुओं को तेल बाती सांस को ही मानिए ।

चाहती क्या जिंदगी इसको ज़रा पहचानिए ।।

मरघटों के देश से लायी चुराकर चार दिन ,

मौत तक जाना जरूरी वो लगन है जिंदगी ।।1

 

बादलों की छांव में हम बेख़बर सोते रहे ।

बीज अपने नाश के हम लोभ में बोते रहे ।।

चाहतो की लाश को ढोते रहे ढोते रहे ,

थक गए तो ओढ़कर सोना कफ़न है जिंदगी ।।2

 

रास आये या न आये साफ वादा है नहीं ।

लक्ष्य निर्धारण न इसका तय इरादा है नहीं ।।

लोभ लालच के गणित में घिर गया है आदमी ,

वासना मय भोग का ऐसा वतन है जिंदगी ।।3

 

जिंदगी वरदान भी है जिंदगी अभिशाप भी ।

आब सी मीठी कभी ये आग जैसा ताप भी ।।

साधना से साधनों की डोर यदि साधे रहे ,

योग का सहयोग हो तो फिर अमन है जिंदगी ।।4

 

फूल पौधे फल बनाकर जन्म देते बीज को ।

क्यों धरा की कोख में हम जांचती हर चीज को ।।

पांच तत्वों का विलय ये पांच तत्वों का अलय ,

चार चरणों में बँटा वो पथ गमन है जिंदगी ।।5

 

देह रूपी रथ हमारा अश्व रूपक प्राण हैं ।

बुद्धि मन योद्धा हमारे समय  संयम वाण हैं ।।

छोड़ का जानी सभी को ईश की यह वाटिका ,

लक्ष्य इसका मौत “हलधर” वो चलन है जिंदगी ।।6

– जसवीर सिंह हलधर , देहरादून

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