राग दीपक गा रही ऐसा भजन है जिंदगी ।
आंधियों की गोद में बैठा पतन है जिंदगी ।।
आँसुओं को तेल बाती सांस को ही मानिए ।
चाहती क्या जिंदगी इसको ज़रा पहचानिए ।।
मरघटों के देश से लायी चुराकर चार दिन ,
मौत तक जाना जरूरी वो लगन है जिंदगी ।।1
बादलों की छांव में हम बेख़बर सोते रहे ।
बीज अपने नाश के हम लोभ में बोते रहे ।।
चाहतो की लाश को ढोते रहे ढोते रहे ,
थक गए तो ओढ़कर सोना कफ़न है जिंदगी ।।2
रास आये या न आये साफ वादा है नहीं ।
लक्ष्य निर्धारण न इसका तय इरादा है नहीं ।।
लोभ लालच के गणित में घिर गया है आदमी ,
वासना मय भोग का ऐसा वतन है जिंदगी ।।3
जिंदगी वरदान भी है जिंदगी अभिशाप भी ।
आब सी मीठी कभी ये आग जैसा ताप भी ।।
साधना से साधनों की डोर यदि साधे रहे ,
योग का सहयोग हो तो फिर अमन है जिंदगी ।।4
फूल पौधे फल बनाकर जन्म देते बीज को ।
क्यों धरा की कोख में हम जांचती हर चीज को ।।
पांच तत्वों का विलय ये पांच तत्वों का अलय ,
चार चरणों में बँटा वो पथ गमन है जिंदगी ।।5
देह रूपी रथ हमारा अश्व रूपक प्राण हैं ।
बुद्धि मन योद्धा हमारे समय संयम वाण हैं ।।
छोड़ का जानी सभी को ईश की यह वाटिका ,
लक्ष्य इसका मौत “हलधर” वो चलन है जिंदगी ।।6
– जसवीर सिंह हलधर , देहरादून