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हिन्दी क़ो दूजों ने अपनाया-अपनों ने बिसराया – डा0 हरेन्द्र हर्ष

neerajtimes.com- जहा एक ओर हिन्दी क़ो अपने ही जन्म स्थान पर उपेक्षित होना पड़ रहा है । वहीं दूसरी ओर वह विदेशों में सम्मान हासिल करती जा रही है । दस जून 2022 वह ऐतिहासिक दिन था जब संयुक्त राष्ट्र महासभा में बहुभाषावाद संम्बन्धी प्रस्ताव में प्रथम बार हिन्दी भाषा का उल्लेख किया गया । वास्तव में यह सभी भारतीयों के लिये गौरव का वह पल था जब किसी अन्तर्राष्टीय निकाय में हिन्दी ने अपना स्थान निश्चित किया । संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रस्ताव में बहुभाषावाद को बढ़ावा देने के लिये अधिकारिक भाषाओं के अलावा हिन्दी को संयुक्त राष्ट्र के काम काज की भाषा के रूप में स्वीकार किया गया है । यह उल्लेखनीय प्रस्ताव संयुक्त राष्ट्र संघ के काम काज के तरीके में एक बड़े बदलाव का भी संकेत है । इस प्रस्ताव में कहा गया है कि संयुक्त राष्ट्र संघ के सभी आवश्यक काम काज और सूचनाओं को इसकी आधिकारिक भाषाओं के अतिरिक्त दूसरी भाषाओं में भी जारी किया जाये, जैसे उन्हें हिन्दी , बांग्ला और उर्दू में भी जारी किया जाये। यहा यह बात भी उल्लेखनीय है कि अब तक संयुक्त राष्ट्र महासभा की छह आधिकारिक भाषाएं थी। जिनमें अंग्रेजी , फ्रेंच, रूसी,  स्पेनिश, अरबी और चीनी ( मंदारिन ) है। बहुभाषावाद को संयुक्त राष्ट्र के प्रमुख मूल्यों में समाहित किया गया है। यह विचारणीय है कि 1 फरवरी सन् 1946 को संयुक्त राष्ट्र महासभा के प्रथम अधिवेशन मे लाये गये सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव संख्या का 13 ( 1 ) का जिक्र करना अति आवश्यक है जिसमें स्पष्ट रूप से कहा गया है कि संयुक्त राष्ट्र अपने उद्देश्यों को तब तक प्राप्त नहीं कर सकता, जब तक कि दुनिया के लोगों को इसके उद्देश्यों और गतिविधियों के बारे में , पूरी जानकारी न हो । भारत इस उद्देश्य को हासिल करने के लिये कन्धे से कन्धा मिला कर संयुक्त राष्ट्र के साथ खड़ा था । भारत सन् 2018 से ही संयुक्त राष्ट्र संघ के वैश्विक संचार विभाग के साथ साझेदारी कर रहा है, जिसका प्रमुख लक्ष्य हिन्दी भाषा में संयुक्त राष्ट्र संघ की पहुच का विस्तार करना और विश्व भर में फैले हिन्दी बोलने वाले लोगों को आपस में जोड़ना है। संयुक्त राष्ट्र संघ की वेबसाइट और इंटरनेट मीडिया खातों के माध्यम से हिन्दी में संयुक्त राष्ट्र संघ के समाचार पहले से ही प्रसारित किये जा रहे हैं। अगर हम भारतीय भाषाओं की बात करें तो हिन्दी, उर्दू और बांग्ला भाषा बोलने वालों को हम एक साथ मिला लें तो यह संख्या चीनी भाषा मंदारिन से अधिक बैठती है। इन भाषाओं को मंजूर करने से संयुक्त राष्ट्र संघ की पहुच इन्हे बोलने वाली एक अरब कीजनसंख्या तक सीधे रुप में हो गई है । मगर यहाॅ हमें इस बात पर भी स्पष्ट रूप से मंथन करना होगा कि मात्र संयुक्त राष्ट्र संघ की आधिकारिक भाषा घोषित हो जाने से ही हिन्दी का भला होने वाला नहीं है । इससे देश की एक सम्पर्क भाषा का प्रश्न हल नहीं हो रहा है? देश में एकरूपता कायम करने के लिये हमें आज नहीं तो कल किसी न किसी एक भारतीय भाषा को सम्पर्क भाषा के रूप में अपनाना ही होगा जो देश की एक और अखण्डता को मजबूत करने में अपना अहम् योगदान प्रदान कर सके । यह कार्य हिन्दी को केवल राजभाषा बनाने से ही पूर्ण वाला नहीं है । वरन् हिन्दी को पूरे देश की व्यवहार भाषा बनाकर ही इस लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है । प्रश्न जहा तक हिन्दी की स्वीकार्यता है त़ो हमें यह बात भी ऑख कान खोलकर जान लेनी चाहिये कि संयुक्त अरब अमीरात की राजधानी आबूधाबी ने एक ऐतिहासिक निर्णय लेते हुए अंग्रेजी और अरबी के बाद हिन्दी को अपने न्यायालयों में तीसरी आधिकारिक भाषा के रुप में सम्मलित कर यह सन्देश देने का प्रयास किया है कि हिन्दी उसे भी प्रिय है। एक अरबी देश द्वारा हिन्दी भाषा को अपनी अदालत का आधिकारिक का दर्जा देना यही साबित करता है कि अपने देश में बेगानी हिन्दी को दुनिया भर में सम्मान और प्यार मिल रहा है। जो हमारे लिये भी एक मिसाल कायम कर हमें लज्जित और शर्मिन्दा होने पर मजबूर कर रहे हैं। यहा हमें यह बात भी स्मरणीय रखनी चाहिये कि हिन्दी विश्व में सर्वाधिक बोली जाने वाली दूसरी भाषा है। प्रशांत महासागर के द्वीपीय देश फिजी ने अपने यहा हिन्दी को आधिकारिक भाषा का स्थान प्रदान कर रखा है। सूरीनाम, त्रिनिदाद, मारीशस , टोबैगो और नेपाल जैसे देशों में हिन्दी का प्रयोग धड़ल्ले के साथ किया जाता । वहा के निवासी इसे बोलने में गर्व अनुभव करते हैं। जबकि अपने जन्म स्थान पर इसके साथ सौतेला व्यवहार हो रहा है। जहा कुछ मतलब परस्त लोगों ने हिन्दी को बिसारने और अपने निजी स्वार्थों को पूरा करने के लिये उसका विरोध करने की ही मुहिम चला रखी है जो देश हित में तो कतई नहीं है ।

(- डा0 हरेन्द्र हर्ष , प्रेरणा हिन्दी प्रचारिणी सभा ध्वनि संवाद- 9759988516)

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