नारी घर की शान है , और गुणों की खान।
नारी बिन जग शून्य है , नारी ही अभिमान।।
नारी तू नारायणी, फिर क्यों अबला रूप।
देवी सी पूजे कहीं, विवश कहीं तम कूप।।
नारी कन्या रूप का , पूजन करते लोग।
कुपथ कुचाली ही करे ,नाबालिग का भोग।।
नारी मन तू है सदा, प्रेम दया का मूर्त।
छल-बल से है छीनते, मर्यादा को धूर्त।।
नारी की गरिमा मिटा , भरते नर का दंभ।
भूल गये क्यों ये मनुज , नारी ही गृह खंभ।।
नारी के सम्मान में, करते नित नव बात।
मंगलयान चढ़े कहीं , सहन कहीं पर घात ।।
चंडी बन जब दौड़ती, काल बदल ले चाल।
संकट में वो धैर्य से , बनती घर की ढाल ।।
नारी रिश्तों की कड़ी, खुशियों की बौछार।
लज्जा का गहना पहन, करती है श्रृंगार।।
– प्रियदर्शिनी पुष्पा, जमशेदपुर