वो अधूरी सी प्यास,
चन्द अधूरे से ख्वाब,
वो भटकते साये,
बस तुम्हारा ख्याल रह गया।
लम्हा-दर-लम्हा तुम्हे सोचना,
तुम्हारा तसव्वुर करना,
तुम्हारा न मिलना,
लिपट के जार-जार रोना रह गया।
न तुम मिले, न जुदा हुए,
और तलाश भी ख़त्म न हुई,
ख्वाहिशे दरकती रही,
बस एक अहसास ज़िंदा रह गया।
तेरी आमद रही ख्यालों में,
मैं सतरंगी ख्वाब बुनता रहा,
तेरा हमें अचानक अलविदा कहना,
दिल को सदमा देके रह गया ।
दरमियाँ हमारे कोई दूसरा न था,
पर तुम्हारे ख्याल बदलते गए,
रस्म अदायगी रही कुछ दिन,
हर ख्याल, ख्वाब बनके रह गया।
चाँद फिर निकला है,
तुम्हारे यौवन सा निखर के.
आ गई अचानक तुम्हारी याद,
और मैं चाँद को अनवरत देखता रह गया।
आज भी जब ख्वाबों में,
तुम्हारे ख्यालों की उँगलियाँ,
मेरे बदन को छूकर निकली,
ये निराश मन तुम्हे सोचता रह गया।
– विनोद निराश, देहरादून