निर्मल मन के धागों पर, अनिश्चितता का घेरा है,
उजालों में कहीं सांसें , कहीं पर घुप्प अंधेरा है।
मिला जीवन में जो जितना, दया का दान तेरा है,
कभी फूलों सा कोमल राह, कभी काँटें घनेरा है।
जन जन के हृदय तट पर, प्रभू तेरा बसेरा है,
कहीं तेरा मिला रहमत, कहीं जुल्मों का डेरा है।
निरंतर बह रही देखो , यहाँ पर प्रेम की सरिता,
कहीं धड़कन में स्वर कल कल ,कहीं सुनसान घेरा है।
पतंगे भाग्य लिखी काली, जले संग दीप बन आली,
है किस्मत एक जैसा ही , लिखा तेरा न मेरा है।
रहे सामर्थ्य श्वांसों में , जपूँगी नाम बस तेरा,
करम मिल जाए जो तेरा , तो जीवन में सवेरा है।
– प्रियदर्शिनी पुष्पा, जमशेदपुर