आप कानून को क्यों कुचलने लगे,
आईना देखकर क्यों तड़पने लगे।
क्या वतन से मुहब्बत नहीं आपको,
न्याय की बात सुनकर बहकने लगे।
हक सभी को बराबर मिले मुल्क में,
क्या गलत कह दिया जो बरसने लगे।
बाँट कर घर न आराम तुमको मिला,
बंधु के चैन को कत्ल करने लगे।
ज्यादती कब चली है किसी की यहाँ,
‘मधु’ कहीं गलतियाँ वह न गिनने लगे।
— मधु शुक्ला,सतना, मध्यप्रदेश